



दिल्ली के रामलीला मैदान में रविवार को देश भर से आए सरकारी कर्मचारियों की एक रैली में मंच पर मौजूद आम आदमी पार्टी के राज्य सभा सांसद संजय सिंह पल भर के लिए असहज स्थिति में आ गए.
असल में पंजाब से आए एक कर्मचारी नेता ने पूछ लिया कि पंजाब में ‘अभी तक ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) क्यों नहीं लागू हुई?’
इस साल आखिर में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं.अगले साल लोकसभा चुनाव होंगे.
इससे पहले सरकारी कर्मचारी संगठनों ने ‘नेशनल मूवमेंट फ़ॉर ओल्ड पेंशन स्कीम’ (एनएमओपीएस) अभियान के बैनर तले दिल्ली में ताक़त दिखाई और राजनीतिक दलों को आगाह किया, ‘अगर ओपीएस लागू नहीं होता है तो ‘वोट की चोट’ से उसे हासिल किया जाएगा.’
कुछ महीने पहले हुए हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में ओपीएस बहाली एक अहम मुद्दा था और राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि चुनावों में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
एनएमओपीएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने मंच पर कई विपक्षी नेताओं की मौजूदगी में कहा भी कि अगर सरकार ओपीएस नहीं लागू करती है तो ‘कर्मचारी वोट की चोट’ से संदेश देने की कोशिश करेगा.
बंधु ने रैली को संबोधित करते हुए कहा, “राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल हो सकती है तो दुनिया में आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरने वाला भारत अपने कर्मचारियों को पेंशन क्यों नहीं दे सकता?”
उन्होंने कहा, “अगर सरकार ने पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल नहीं की तो आने वाले चुनाव में वोट फ़ॉर ओपीएस अभियान चलाकर पुरानी पेंशन बहाल कराएंगे.”

जब भूपेंद्र सिंह हुडा बोले- ‘ओपीएस बहाल करेंगे‘
कर्मचारियों के समर्थन में विपक्षी दलों के कई नेता भी इस रैली में पहुंचे थे. रामलीला मैदान तब तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा जब कांग्रेस नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने ओपीएस लागू करने का मंच से ही वायदा कर दिया.
अपने संबोधन में हुडा ने कहा, “अगर हरियाणा में कांग्रेस सत्ता में आती है तो पहली कलम से वो सरकारी कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करेंगे.”
इसके बाद मंच पर बोलने आए आम आदमी पार्टी के नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने भी पंजाब में ‘जल्द से जल्द ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने’ का वायदा किया.
उन्होंने कहा, “आम आदमी पार्टी कर्मचारी हितों के लिए प्रतिबद्ध है और वो आश्वासन नहीं देती है बल्कि गारंटी देती है.”
मंच पर जिस तरह कर्मचारी नेताओं, ट्रेड यूनियन नेताओं, किसान नेताओं, राजनीतिक दलों के नेताओं की हिस्सेदारी दिखी, जिनमें अधिकांश दल विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का हिस्सा भी हैं, वो इस मुद्दे की अहमियत की ओर भी एक इशारा है.
सुबह जब रैली शुरू हुई तो संयुक्त किसान मोर्चा के संयोजक डॉ. दर्शन पाल, पंजाब की एक बड़ी किसान यूनियन बीकेयू एकता उगरहां के नेता जोगिंदर सिंह उगरहां और किसान नेता राकेश टिकैत पहुंचे.
इसके बाद राजनीतिक दलों के नेताओं के आने का सिलसिला शुरू हुआ. कांग्रेस के कई नेता रैली को समर्थन देने पहुंचे जिनमें भूपेंद्र हुड्डा के अलावा संदीप दीक्षित, दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली, कामगार कर्मचारी कांग्रेस के चेयरमैन और कांग्रेस नेता डॉ. उदित राज का नाम शामिल है.
उदित राज ने कहा कि ‘लोकसभा चुनाव 2024 में पुरानी पेंशन बहाली देश का प्रमुख मुद्दा होगा.’
अन्य विपक्षी दलों में सीपीआई एमएल के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्या, सपा के बिहारी यादव, बसपा से लोकसभा सांसद श्याम सिंह यादव का नाम भी शामिल है जो रैली में पहुंचे थे.
एनडीए की ‘दूरी‘
दिलचस्प है कि ‘पेंशन शंखनाद महारैली’ में जो राजनीतिक रंग दिखा उसमें बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए से जुड़े राजनीतिक दलों के नेताओं की गैर मौजूदगी थी.
ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर मोदी सरकार की प्रतिक्रिया ठंडी ही रही है. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर समेत बीजेपी के कई नेता इसकी खुलकर मुख़ालफ़त कर चुके हैं.
इसी साल बीते फ़रवरी में संसद में पीएम मोदी खुद राज्यों को चेताया था और बिना ओल्ड पेंशन स्कीम का नाम लिए कहा था, “मैं राजनीतिक वैचारिक मतभेदों को अलग रख कर कहना चाहता हूं कि देश की आर्थिक सेहत से खिलवाड़ मत कीजिए. आप कोई ऐसा पाप मत कीजिए जो आपके बच्चों के अधिकारों को छीन ले.”
इसी साल जनवरी में योजना आयोग के पूर्व डिप्टी चेयरमैन और अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने भी ओल्ड पेंशन स्कीम को ‘बेतुका’ और ‘भविष्य में कंगाली लाने’ वाला बताया था.
मनमोहन सिंह सरकार के समय अहलूवालिया योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन थे. योजना आयोग अब अस्तित्व में नहीं है.
पीएम मोदी का फरवरी का बयान इस मुद्दे पर बीजेपी के रूख के एक पहलू को ही सामने लाता है. पार्टी में कुछ नेता ओपीएस की मांग का समर्थन भी कर चुके हैं.
महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि ‘राज्य सरकार ओपीएस बहाली को लेकर सकारात्मक है.’ लेकिन इसे लेकर अन्य बड़े नेताओं ने ऐसा कुछ नहीं कहा है जिससे कर्मचारियों कोई ठोस भरोसा मिल सके.

रामलीला मैदान से संदेश
दिल्ली में हुई महारैली के मुख्य संयोजक और एनएमओपीएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने कहा, “अगर इस सरकार ने ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल नहीं किया तो 2024 के लोकसभा चुनाव में कर्मचारी उन्हें पेंशन दे देंगे.”
बंधु ने कहा, “भूपेंद्र हुड्डा, संजय सिंह, राकेश टिकैत ने ओपीएस मुद्दे पर समर्थन दिया है. राकेश टिकैत ने यहां तक कहा कि आगे होने वाले आंदोलनों में ओपीएस भी एक मुद्दा होगा. पुरानी पेंशन की मांग अब एक जनांदोलन का रूप ले रहा है.”
इस रैली की बहुत समय से तैयारी चल रही थी. विजय कुमार बंधु ने बताया कि उहोंने पिछले छह महीने में देश भर में 18,000 किलोमीटर की यात्रा की और कर्मचारियों को एकजुट किया.
आयोजकों में से एक डॉ. कमल उसरी ने कहा कि इस महारैली को अनुमति देने में दिल्ली पुलिस ने काफी टालमटोल की और डेढ़ दिन पहले ही परमिशन मिल पाई, जिससे मंच तक पूरी तरह नहीं लग पाया.
विजय बंधु ने बीबीसी से कहा, ‘पूरा रामलीला मैदान देश भर से आए सरकारी कर्मचारियों से भरा हुआ था. लोगों का आना जारी था लेकिन पुलिस ने दोपहर डेढ़ बजे रैली समाप्त करने को कहा.’
पिछले कई सालों से पूरे देश में ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर सरकारी कर्मचारी आंदोलन कर रहे हैं. पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में ये मुद्दा भी बना.
राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्यों ने अपने राज्य कर्मचारियों के लिए इसे लागू भी कर दिया है.
पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार ने नोटिफ़िकेशन जारी कर दिया है हालांकि अभी तक ये लागू नहीं हुआ है.
हिमांचल में तो कांग्रेस का ये सबसे बड़ा चुनावी वादा था. उसने मध्यप्रदेश में भी ओपीएस लागू करने का वादा किया है.
क्या है ओल्ड पेंशन स्कीम?
ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत सेवानिवृत्त कर्मचारी को अनिवार्य पेंशन का अधिकार है. ये सेवानिवृत्ति के समय मिलने वाले मूल वेतन का 50 प्रतिशत होता है. यानी मूल वेतन का आधा हिस्सा पेंशन के रूप में दिया जाता है.
इतना ही नहीं, सेवानिवृत्त कर्मचारी को कार्यरत कर्मचारी की तरह लगातार महंगाई भत्ता में बढ़ोतरी की सुविधा भी मिलती है.
इससे महंगाई बढ़ने के साथ-साथ पेंशन में भी बढ़ोतरी होती रहती है.
जबकि न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) जिसे 2004 में लागू किया गया. जो कर्मचारी 2004 के बाद भर्ती हुए उन्हें एनपीएस के दायरे में रखा गया.
कर्मचारी यूनियनों का कहना है कि सरकारी कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद बहुत मामूली पेंशन मिल रही है और यह ‘बुढ़ापे की लाठी’ है.
