



धनबाद – जिले में बहुप्रतीक्षित आरा मोड़ फ्लाईओवर और अंडरपास परियोजना जहां एक ओर ट्रैफिक जाम की समस्या का स्थायी समाधान लाने की ओर अग्रसर है, वहीं दूसरी ओर इस विकास की चकाचौंध में गुलज़ारबाग के 218 गरीब परिवारों का अंधेरा बढ़ता जा रहा है। इन परिवारों को अतिक्रमण की जद में बताते हुए मकान खाली करने का नोटिस थमा दिया गया है – वो भी सिर्फ 7 दिन के भीतर।
7 दिन में उजड़ने की तैयारी!
समाजसेवी जुली परवीन ने बताया कि गुलज़ारबाग इलाके में रहने वाले सैकड़ों लोग बेहद दहशत में हैं। इन्हें बीते दिनों प्रशासन द्वारा मकान खाली करने का निर्देश मिला है। इनका कहना है कि नोटिस में स्पष्ट कहा गया है कि फ्लाईओवर व अंडरपास निर्माण कार्य के पूर्व इन मकानों को हटाया जाएगा।
“क्या ये संभव है कि इतने कम समय में गरीब परिवार मकान खाली कर दें? क्या उनके पास दूसरा मकान खरीदने या किराये पर जाने की क्षमता है? ये लोग मजदूरी करते हैं, रिक्शा चलाते हैं, महिलाएं झाड़ू-पोछा और बर्तन मांजने जैसे कामों से अपने परिवार का पेट पालती हैं,” – जुली परवीन।
प्रशासन ने दिया था पुनर्वास का आश्वासन, अब सब कुछ उल्टा?
स्थानीय लोगों की मानें तो जब यह परियोजना प्रस्तावित थी और सर्वे का काम चल रहा था, तब प्रशासन द्वारा यह भरोसा दिलाया गया था कि किसी का भी घर नहीं उजड़ेगा, और यदि ऐसा होता भी है तो सभी को पुनर्वास की सुविधा दी जाएगी। मगर अब, जब निर्माण कार्य की उल्टी गिनती शुरू हो गई है, तो लोग खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
गरीबों के लिए ‘विकास’ बना विनाश?
विकास परियोजनाओं का उद्देश्य जनहित होता है, लेकिन यदि इन्हीं परियोजनाओं के चलते सैकड़ों परिवार बेघर हो जाएं, तो यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या यह विकास वाकई सबके लिए है?
गुलज़ारबाग में रहने वाले एक मजदूर मुहम्मद इकबाल बताते हैं,
“हमने अपनी सारी ज़िंदगी की कमाई से ये छोटा सा घर बनाया था। अब अचानक हमसे कहा जा रहा है कि 7 दिन में खाली करो। कहां जाएं? किराया देने लायक भी नहीं हैं हमारे पास पैसे।”
समाजसेवी की मांग – मिलनी चाहिए पुनर्वास की सुविधा
समाजसेवी जुली परवीन की मांग है कि जब तक सभी प्रभावित परिवारों को ठोस और सुरक्षित पुनर्वास योजना के तहत वैकल्पिक आवास नहीं मिलते, तब तक किसी भी तरह की बेदखली न की जाए।
प्रशासन की चुप्पी – चिंता का विषय
फिलहाल, प्रशासन की ओर से इस मामले पर कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। प्रभावित लोग स्थानीय प्रतिनिधियों, मीडिया और जनहित याचिकाओं की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं।
धनबाद के लिए फ्लाईओवर और अंडरपास एक जरूरी बुनियादी ढांचे का हिस्सा हैं, लेकिन यदि इन निर्माणों के नाम पर गरीबों के घर उजाड़े जाते हैं, तो यह विकास असंतुलित और अमानवीय बन जाता है। गुलज़ारबाग की ये कहानी सिर्फ ईंट-पत्थर की नहीं, बल्कि उन 218 सपनों की है जो अब उजड़ने की कगार पर हैं। क्या प्रशासन इन परिवारों की चीख सुन पाएगा? या फिर यह भी एक और ‘विकास की कीमत’ बनकर इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा?
