धनबाद की हकीकत से रूबरू हुए कोयला राज्य मंत्री: “देश रोशन, धनबाद अंधेरे में”

देश को ऊर्जा देने वाला शहर कहलाने वाला धनबाद आज खुद अंधेरे और उपेक्षा का शिकार है। रविवार को कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे जब यहां पहुंचे, तो उन्हें अपनी आंखों से देखना और महसूस करना पड़ा कि “धनबाद में ज़िंदगी कितनी कठिन है।” बीएमएस के विश्वकर्मा भवन में आयोजित कार्यक्रम के दौरान जैसे ही वे मंच से लोगों को संबोधित कर रहे थे, बिजली चली गई — और मंत्री को अंधेरे में मोबाइल टॉर्च की रोशनी में भाषण देना पड़ा। यह दृश्य प्रतीक था उस सच्चाई का, जो इस शहर के हर नागरिक की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में शामिल है।

धनबाद: विकास की उम्मीदों के बीच घुटती ज़िंदगी

मंत्री दुबे के शब्दों में ही पीड़ा झलक उठी — धनबाद के कोयले से पूरा देश रोशन हो रहा है, लेकिन यहां के लोग अंधेरे में हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।” धनबाद की जनता यह सुनकर एक बार फिर सिहर उठी, क्योंकि यह सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि उनकी रोज़ की जद्दोजहद की पुष्टि थी।

यहां के लोगों का जीवन सालों से प्रदूषण, जल संकट, सड़क जाम, बिजली कटौती, स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव और प्रशासनिक लापरवाही की भेंट चढ़ा हुआ है। न तो समय पर पानी मिलता है, न बिजली। सड़कों की हालत ऐसी है कि बारिश होते ही शहर दलदल बन जाता है। इलाज के नाम पर अस्पतालों में डॉक्टर नहीं मिलते, और दवाएं भी अक्सर नदारद रहती हैं।

जनप्रतिनिधि जीतते हैं, पर शहर हारता है

हर चुनाव के बाद यहां की जनता उम्मीद करती है कि शायद अब कुछ बदलेगा। पर नतीजा वही रहता है — वादे अधूरे, समस्याएं यथावत। मंत्रीजी आए, बिजली कटौती पर भाषण देकर चले गए, मगर न यहाँ की हवा साफ हुई, न सड़कें सुधरीं, और न ही लोगों की तकलीफें कम हुईं।

धनबाद की हालत देखकर यही लगता है कि यह शहर मानो राजनीतिक भाषणों और योजनाओं की कब्रगाह बन गया है।

झरिया एक्शन प्लान: कब मिलेगा विस्थापितों को अधिकार?

कार्यक्रम के दौरान मंत्री ने झरिया एक्शन प्लान की समीक्षा जल्द करने की बात कही। उन्होंने आश्वासन दिया कि इस योजना के तहत विस्थापित परिवारों को जल्द ही पुनर्वास का लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अधिकारियों के साथ इस विषय पर मैराथन बैठकें हो चुकी हैं।

पर सवाल यह है कि इन बैठकों का असर जमीन पर कब दिखाई देगा? झरिया में हजारों लोग आज भी गैस रिसाव, जमीन धंसने और प्रदूषण के बीच जीवन बिता रहे हैं। क्या पुनर्वास सिर्फ घोषणाओं तक सीमित रहेगा?

मजदूर-किसानों की पीड़ा को समझे सरकार

मंत्री दुबे ने अपने संबोधन में मजदूरों और किसानों को देश की आत्मा बताया और कहा कि 2047 तक भारत आत्मनिर्भर राष्ट्र बनेगा। मगर यह आत्मनिर्भरता तभी संभव है जब देश की आत्मा — मजदूर और किसान — सुरक्षित और सशक्त होंगे। धनबाद जैसे औद्योगिक शहरों में मजदूरों की दशा देखकर यह नारा खोखला प्रतीत होता है।

क्या बदलेगी धनबाद की किस्मत?

धनबाद की जनता अब सवाल पूछ रही है — “क्या हमारा शहर कभी बदलेगा?” क्या कभी ऐसा दिन आएगा जब धनबाद के लोग भी सुकून से जीवन जी सकें, बुनियादी सुविधाएं उन्हें बिना संघर्ष के मिलें? मंत्रीजी का दौरा एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या सत्ता की नजरें इस शहर की पीड़ा को सिर्फ चुनावी आंकड़ों के चश्मे से देखती हैं?

जब तक योजनाओं का अमल ज़मीन पर नहीं होता और राजनीतिक इच्छाशक्ति ईमानदारी से काम नहीं करती, तब तक धनबाद की हालत वही रहेगी — “अंधेरे में एक रोशन करने वाला शहर।”


 प्रतिवेदन

मनव्वर अख्तर
संवाददाता,
तारीख: 5 मई 2025

The Mirchi News
Author: The Mirchi News

यह भी पढ़ें